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राही ओ राही

नमन मंच
मेरे जज़्बात,


      राही ओ राही 


राही ओ राही तू चल चला चल ।
रोज उतरना तुझको एक नई कसौटी पर ।।
कर्त्तव्य तेरे हज़ार जानें कितनी ज़िम्मेदारी तेरे  कंधो पर ।
रोज़ बरोज तू लड़ता हारता खड़ा तू होता ।।
तेरी लड़ाई तू ही लड़ता गिरता फिर सम्हाल खुद को लेता ।
ख्वाहिशें तेरी हज़ार पर तू आम इंसान जानता  तू अच्छे से ।।
मन को मारना समझाना तुझको आता ।
आज़ फिर हुई तेरी तुझसे ही लड़ाई ।।
मन मांग रहा था बड़ी मोटर गाड़ी ।
मन को मारा लताड़ा खड़ा तू भोर को हुआ ।।
राही गीत गाता फिर चला एक नया हुआ तेरा सवेरा ।
कसौटी पर उतरने खड़ा लड़ने आज़ से फिर तैयार तू हुआ ।

वर्षा उपाध्याय,खंडवा.

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5 Comments

बहुत ही सुंदर

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Alka jain

17-Jan-2024 04:17 PM

Nice

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Rupesh Kumar

07-Jan-2024 09:29 PM

Nice

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